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Sutra: | दोषैः पृथक् सह च चित्तविपर्ययाच्च भक्तायनेषुह्र्दि चावतते प्रगाढम्| नान्ने रुचिर्भवति तं भिषजो विकारं भक्तोपघातमिह पञ्चविधं वदन्ति॥ |
Reference: | 1.2.57.3.0(पूर्व>निदान>ग्रन्थपच्यर्बुदगलगण्डनिदानम्>सूत्र#3.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | ग्रन्थपच्यर्बुदगलगण्डनिदानम् |
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