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Sutra: | तत्र वर्षास्वान्तरिक्षमौद्भिदं वा सेवेत्, महागुणत्वात्; शरदि सर्वं, प्रसन्नत्वात्;हेमन्ते सारसं ताडागं वा; वसन्ते कौपं प्रास्रवणं वा; प्रावृषि चौण्ट्यमनभिवृष्टं सर्वं चेति॥ |
Reference: | 1.1.45.8.0(पूर्व>सूत्र>द्रवद्रव्यविधिम्>सूत्र#8.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | द्रवद्रव्यविधिम् |
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