Index Search for 'हितमुच्यते।।' |
Sutra: | पिबेत् प्रात: सुरारिष्टस्नेहमूत्रसुखाम्बुभि:। तक्रेण वाऽथ तक्रं वा केवलंहितमुच्यते।। |
Reference: | 1.1.40.178.0(पूर्व>सूत्र>द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्>सूत्र#178.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम् |
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