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Sutra: नेत्याहुरन्ये। विपाकः प्रधानमिति। कस्मात्? सम्यङ्मिथ्याविपक्वत्वादिह सर्वद्रव्याण्यभ्यवहृतानि सम्यक् मिथ्या विपक्वानि गुणं दोषं वा जनयन्ति। तत्राहुरन्ये- प्रति रसं पाक इति। केचित्त्रिविधमिच्छन्ति- मधुरमम्लं कटुकं चेति। तत् तु न सम्यक्, भूतगुणागमाच्चान्योऽम्लो विपाको नास्ति; पित्तंहि विदग्धमम्लतामुपैत्याग्नेयत्वात्। यद्येवं लवणोऽप्यन्यः पाको भविष्यति, श्लेष्माहि विदग्धो लवणतामुपैति। मधुरो मधुरस्याम्लोऽम्लस्यैवं सर्वेषामिति केचिदाहुः; दृष्टान्तं चोपदिशन्ति- यथा तावत् क्षीरं मुखागतं पच्यमानं मधुर
Reference:1.1.40.10.0(पूर्व>सूत्र>द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्>सूत्र#10.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्
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