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Sutra: | हविर्हितं क्षीरभवं तु प्त्तके वदन्ति नस्ये मधुरौषधे कृतम्। तत्तर्पणे चैव हितं प्रयोजितं सजाङ्गलस्तेषु च यः पुटाव्हयः॥ |
Reference: | 1.1.17.38.0(पूर्व>सूत्र>आमपक्वैषणीयम्>सूत्र#38.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | आमपक्वैषणीयम् |
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