Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'षष्ठेमज्जानमंनुप्'
Sutra: तत्र सर्वेषां सर्पाणां विषस्य सप्त वेगाः भवन्ति। तत्र दर्वीकराणां प्रथमेवेगे विषं शोणितं दूषयति, तत् प्रदुष्टं कृष्णतामुपैति,तेन कार्ष्ण्यं पिपीलिकापरिसर्पणमिव चाङ्गे भवति; द्वितीये मांसं दूषयति, तेनात्यर्थं कृष्णता शोफो ग्रन्थयश्चाङ्गे भवन्ति; तृतीयो मेदो दूषयति, तेन दंशक्लेदः शिरोगौरवं स्वेदश्चक्षुर्ग्रहणं च; चतुर्थे कोष्ठमनुप्रविश्य कफप्रधानान् दोषान् दूषयति, तेनतन्द्राप्रसेकसन्धिविश्लेषा भवन्ति; पञ्चमेऽस्थीन्यनुप्रविशति प्राणमग्निं च दूषयति, तेन पर्वभेदो हिक्का दाहश्च भवति;षष्ठेमज्जानमंनुप्
Reference:1.1.4.44.0(पूर्व>सूत्र>प्रभाषणीयम्>सूत्र#44.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:प्रभाषणीयम्
Search other sources: search this word on other online resources