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Sutra: | यत् प्लीह्नि सर्पिर्विहितंषडङ्गं तव्दातकासं जयति प्रसह्य। विदारिगन्धादिकृतं घृतं वा रसेन वा वासकजेन पक्वम्॥ |
Reference: | 1.2.52.26.0(पूर्व>निदान>प्रमेहनिदानम्>सूत्र#26.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | प्रमेहनिदानम् |
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