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Tantra
 


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Index Search for        'ललाटे'
Sutra: स्वेभ्यः स्थानेभ्यः शरीरैकदेशानामवस्रस्तोत्क्षिप्तभ्रान्तावक्षिप्तपतितविमुक्तनिर्गतान्तर्गतगुरुलघुत्वानि, प्रवालवर्णव्यङ्गप्रादुर्भावो वाऽप्यकस्मात्, सिराणां च दर्शनं ललाटे, नासावंशे वा पिण्डोत्पत्तिः,ललाटे वा प्रभातकाले स्वेदः, नेत्ररोगाद्विना वाऽश्रुप्रवृत्तिः, गोमयचूर्णप्रकाशस्य वा रजसो दर्शनमुत्तमाङ्गे निलयनं वा कपोतकङ्ककाकाप्रभृतीनां, मूत्रपुरीषवृद्धिरभुञ्जानानां, तत्प्रणाशो भुञ्जानानां वा, स्तनमूलहृदयोरःसु च शूलोत्पत्तयः, मध्ये शूनत्वमन्तेषु परिम्लायित्वं विपर्ययो वा, तथाऽर्धाङ्गे श्वयथुः
Reference:1.1.32.4.0(पूर्व>सूत्र>स्वभावविप्रतिपत्तिम्>सूत्र#4.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:स्वभावविप्रतिपत्तिम्
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