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Index Search for 'रौक्ष्याद्रौक्ष्यं,' |
Sutra: | तत्र शैत्यरौक्ष्यलाघववैशद्यवैष्टम्भ्यगुणलक्षणो वायुस्तस्य समानयोनिः कषायो रसः; सोऽस्य शैत्यात् शैत्यं वर्धयति,रौक्ष्याद्रौक्ष्यं, लाघवाल्लाघवं, वैशाद्याद्वैशद्यं, वैष्टम्भ्याद्वैष्टम्भ्यमिति॥ |
Reference: | 1.1.42.7.0(पूर्व>सूत्र>रसविशेषविज्ञानीयम्>सूत्र#7.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | रसविशेषविज्ञानीयम् |
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