Index Search for 'रोपयेद्व्रणम्।' |
Sutra: | भवन्ति चात्र- तस्मादन्तर्बहिश्चैव सुशुद्धंरोपयेद्व्रणम्। रूढेऽप्यजीर्णव्यायामव्यवादीन् विवर्जयेत्। हर्षं क्रोधं भय्ं चापि यावत् स्थैर्योपसंभवात्॥ |
Reference: | 1.1.5.39.0(पूर्व>सूत्र>अग्रोपहरणीयम्>सूत्र#39.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | अग्रोपहरणीयम् |
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