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Sutra: | आन्तरिक्षा:- शब्द: शब्देन्द्रियं सर्वच्छिद्रसमूहो विविक्तता च; वायव्यास्तु स्पर्श: स्पर्शेन्द्रियं सर्वचेष्टासमूह: सर्वशरीरस्पन्दनं लघुता च; तैजसास्तु रूपंरूपेन्द्रियं वर्ण: सन्तापो भ्राजिष्णुता पक्तिरमर्षस्तैक्ष्ण्यं शौर्यं च; आप्यास्तु रसो रसनेन्द्रियं सर्वद्रवसमूहो गुरुता शैत्यं स्नेहो रेतश्च; पार्थिवास्तु गन्धो गन्धेन्द्रियं सर्वमूर्तसमूहो गुरुता चेति॥ |
Reference: | 1.1.1.19.0(पूर्व>सूत्र>वेदोत्पत्तिः>सूत्र#19.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | वेदोत्पत्तिः |
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