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'रूढोऽपि'
Sutra:
न चाशुद्धरक्तमतिप्रवृत्तरक्तं क्षीणरक्तं वा सन्निदध्यात्। स हि वातदुष्टे रक्ते
रूढोऽपि
परिपुटनवान्, पित्तदुष्टे दाहपाकरागवेदनावान्, श्लेष्मदुष्टे स्तब्धः कण्डूमान्, अतिप्रवृत्तरक्ते श्यावशोफवान्, क्षीणोऽल्पमांसो न वृद्धिमुपैति॥
Reference:
1.1.16.17.0(पूर्व>सूत्र>कर्णव्यधबन्धविधिम्>सूत्र#17.0)
Tantra:
पूर्व
Sthana:
सूत्र
Adhyaya:
कर्णव्यधबन्धविधिम्
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