Index Search for 'रिरंसोर्मनसि' |
Sutra: | गन्धा मनोज्ञा रूपाणि चित्राण्युपवनानि च। मनसश्चाप्रतीघातो वाजीकुर्वन्ति मानवम्। तैस्तैर्भावैरहृद्यैस्तुरिरंसोर्मनसि क्षते॥ |
Reference: | 1.1.26.9.0(पूर्व>सूत्र>प्रनष्टशल्यविज्ञानीयम्>सूत्र#9.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | प्रनष्टशल्यविज्ञानीयम् |
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