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Sutra: | (निद्रा सात्म्यीकृता यैस्तुरात्रौ च यदि वा दिवा।) दिवारात्रौ च ये नित्यं स्वप्नजागरणोचिताः। न तेषां स्वपतां दोषो जाग्रतां वाऽपि जायते॥ |
Reference: | 1.1.4.41.0(पूर्व>सूत्र>प्रभाषणीयम्>सूत्र#41.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | प्रभाषणीयम् |
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