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Sutra: | अथ खलु सप्त पुरुषारसायनं नोपयुञ्जीरन् तद्यथा- अनात्मवानलसो दरिद्रः प्रमादी व्यसनी पापकृद् भेषजापमानी चेति सप्तभिरेव कारणैर्न संपद्यते। तद्यथा- अज्ञानादनारम्भादस्थिरचित्तत्वाद्दारिद्र्यादनायत्तत्वादधर्मादौषधालाभाच्चेति॥ |
Reference: | 1.1.30.4.0(पूर्व>सूत्र>पञ्चेन्द्रियार्थविप्रतिपत्तिम्>सूत्र#4.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | पञ्चेन्द्रियार्थविप्रतिपत्तिम् |
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