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'रसः,'
Sutra:
तस्य पुनरन्ययोनिः कटुको
रसः,
स श्लेष्मणः प्रत्यनीकत्वात् कटुकत्वान्माधुर्यमभिभवति, रौक्ष्यात् स्नेहं, लाघवाद्गौरवम्, औष्ण्याच्छैत्यं, वैशद्यात्पैच्छिल्यमिति। तदेतन्निदर्शनमात्रमुक्तं भवति॥
Reference:
1.1.42.10.0(पूर्व>सूत्र>रसविशेषविज्ञानीयम्>सूत्र#10.0)
Tantra:
पूर्व
Sthana:
सूत्र
Adhyaya:
रसविशेषविज्ञानीयम्
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