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Sutra: | माधुर्यस्नेहगौरवशैत्यपैच्छिल्यगुणलक्षणः श्लेष्मा; तस्य समानयोनिर्मधुरोरसः, सोऽस्य माधुर्यान्माधुर्यं वर्धयति, स्नेहात् स्नेहं, गौरवाद्गौरवं, शैत्याच्छैत्यं पैच्छिल्यात्पैच्छिल्यमिति॥ |
Reference: | 1.1.42.9.0(पूर्व>सूत्र>रसविशेषविज्ञानीयम्>सूत्र#9.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | रसविशेषविज्ञानीयम् |
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