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Tantra
 


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Index Search for        'रजस्वलां'
Sutra: तत्रातिमैथुनादतिब्रह्मचर्याद्वा तथाऽतिब्रह्मचारिणीं चिरोत्सृष्टांरजस्वलां दीर्घरोमां कर्कशरोमसङ्कीर्णरोमां निगूढरोमामल्पद्वारां महाद्वारामप्रियामकामामचौक्षसलिलप्र्क्षालितयोनिमप्रक्षालितयोनिं योनिरोगोपसृष्टां स्वभावतो वा दुष्टयोनिं वियोनिं वा नारीमवर्थमुपसेवमानस्य तथा करजदशनविषशूकनिपातनाद् बन्धनाद्धस्ताभिघाताच्चतुष्पदीगमनादचंक्षसलिलप्रक्षालनादवपीडनाच्छुक्रवेगविधारणान्मैथुनान्ते वाऽप्रक्षालनादिभिर्मेढ्रमागम्य प्रकुपिता दोषा: क्षतेऽक्षते वा श्वयथुमुपजनयन्ति, तमुपदंशमित्याचक्षते॥
Reference:1.1.12.7.0(पूर्व>सूत्र>अग्निकर्मविधिम्>सूत्र#7.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:अग्निकर्मविधिम्
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