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Sutra: | यस्मै प्रयच्छन्त्यरयो गरांश्च दुष्टाम्बुदूषीविषसेवनाद्वा। तेनाशुरक्तं कुपिताश्च दोषाः कुर्वन्ति घोरं जठरं त्रिलिङ्गम्॥ |
Reference: | 1.1.7.12.0(पूर्व>सूत्र>यन्त्रविधिम्>सूत्र#12.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | यन्त्रविधिम् |
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