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Sutra: | द्राक्षायुतं हृतमलं मदिरामयार्तैस्तत्पानकं शुचि सुगन्धि नरैर्निषेव्यम्। पिष्ट्वा पिबेच्च मधुकं कटुरोहिणीं च द्राक्षां च मूलमसकृत् त्रपुषीभवंयत्॥ |
Reference: | 1.2.47.33.0(पूर्व>निदान>वातव्याधिनिदानम्>सूत्र#33.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | वातव्याधिनिदानम् |
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