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Sutra: | सर्वत्र वर्धते क्षिप्रंभ्रमन्नथ सघोषवान्। पिपासा वर्धते तीव्रा भ्रमो मूर्च्छा च जायते॥ |
Reference: | 1.1.42.138.0(पूर्व>सूत्र>रसविशेषविज्ञानीयम्>सूत्र#138.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | रसविशेषविज्ञानीयम् |
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