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Sutra: | द्विविधं वातशोणितमुत्तानमवगाढं चेत्येके भाषन्ते; तत्तु न सम्यक्, तद्धि कुष्ठवदुत्तानंभूत्वा कालान्तरेणावगाढीभवति, तस्मान्न द्विविधम्॥ |
Reference: | 1.1.5.3.0(पूर्व>सूत्र>अग्रोपहरणीयम्>सूत्र#3.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | अग्रोपहरणीयम् |
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