Index Search for 'भिकसहस्त्रैरपि' |
Sutra: | रुजः सुतीव्राः प्रतनोति मूर्ध्नि विशेषतश्चापि हि शङ्खयोस्तु। सुकष्टमेनं खलु शङ्खकाख्यम् महर्षयो वेदविदः पुराणाहः। व्याधिं वदन्त्युद्गतमृत्युकल्पंभिकसहस्त्रैरपि दुर्निवारम्॥ |
Reference: | 1.1.25.17.0(पूर्व>सूत्र>अष्टविधशस्त्रकर्मीयम्>सूत्र#17.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | अष्टविधशस्त्रकर्मीयम् |
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