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Sutra: | तत्र वातजं खरं कृष्णं परुषमनिमित्तानिलरुजं परिस्फुटति च बहुश: , पित्तजं तु पीतावभासमीषन्मृदु ज्वरदाहप्रायं च; श्लेष्मजं तु श्वेतं स्निग्धावभासं मन्दवेदनंभारिकं महाग्रन्थिकं कण्टकैरुपचितं च॥ |
Reference: | 1.1.12.11.0(पूर्व>सूत्र>अग्निकर्मविधिम्>सूत्र#11.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | अग्निकर्मविधिम् |
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