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Sutra: | निमग्नरूपं हिभवेत्तु कृष्णे सूच्येव विद्धं प्रतिभात्ति यद्वै। स्रावं स्रवेदुष्णमतीव रुक् च तत् सव्रणं शुक्र(क्ल)मुदाहरन्ति॥ |
Reference: | 1.1.5.4.0(पूर्व>सूत्र>अग्रोपहरणीयम्>सूत्र#4.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | अग्रोपहरणीयम् |
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