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Sutra: | तत्र वातानुलोम्यमन्नरुचिरग्निदीप्तिर्लाघवं बलवर्णोत्पत्तिर्मनस्तुष्टिरिति सम्यग्दग्धलिङ्गानि, अतिदग्धे तु गुदावदरणं दाहो मूर्च्छा ज्वरः पिपासा शोणितातिप्रवृत्तिस्तन्निमित्ताश्चोपद्रवाभवन्ति, श्यामाल्पव्रणता कण्डूरनिलवैगुण्यमिन्द्रियाणामप्रसादो विकारस्य चाशान्तिर्हीनदग्धे॥ |
Reference: | 1.1.6.6.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#6.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | ऋतुचर्यम् |
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