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Sutra: | सम्पश्यतःषडपि येऽभिहितास्तु काचास्ते पक्ष्मकोपसहितास्तुभवन्ति याप्याः। चत्वार एव पवनप्रभवास्त्वसाध्या द्वौ पित्तजौ कफनिमित्तज एक एव। अष्टार्धका रुधिरजाश्च गदास्त्रिदोषास्तावन्त एव गदितावपि बाह्यजौ द्वौ॥ |
Reference: | 1.1.8.11.0(पूर्व>सूत्र>शस्त्रावचारणीयम्>सूत्र#11.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | शस्त्रावचारणीयम् |
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