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Sutra: | यथा नरेन्द्रोपहतस्य कस्यचिद्भवेत् प्रसादस्तत एव न्यायतः।ध्रुवं तथा मद्यहतस्य देहिनो भवेत्प्रसादस्तत एव न्यायतः॥ |
Reference: | 1.2.47.48.0(पूर्व>निदान>वातव्याधिनिदानम्>सूत्र#48.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | वातव्याधिनिदानम् |
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