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Sutra: | भवति चात्र- एवं विवर्धितः कर्णश्छिद्यते तुद्विधा नृणाम्। दोषतो वाऽभिघाताद्वा सन्धानं तस्य मे शृणु॥ |
Reference: | 1.1.16.9.0(पूर्व>सूत्र>कर्णव्यधबन्धविधिम्>सूत्र#9.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | कर्णव्यधबन्धविधिम् |
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