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Sutra: | ब्राह्मणस्त्रायाणां वर्णानामुपनयनं कर्तुमर्हति, (राजन्योद्वस्य, वैश्यो वैश्यस्यैवेति), शूद्रमपि कुलगुणसंपन्नं मन्त्रवर्जनमुपनीतमध्यापयेदित्येके॥ |
Reference: | 1.1.2.5.0(पूर्व>सूत्र>शिष्योपनयनीयम्>सूत्र#5.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | शिष्योपनयनीयम् |
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