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Tantra
 


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Index Search for        'दोषरसमूत्रपुरीषाणि;'
Sutra: तच्चादृष्टहेतुकेन विशेषेण पक्वामाशयमध्यस्थं पित्तं चतुर्विधमन्नपानं पचति, विवेचयति चदोषरसमूत्रपुरीषाणि; तत्रस्थमेव चात्मशक्त्या शेषाणां पित्तस्थानानां शरीरस्य चाग्निकर्मणाऽनुग्रहं करोति, तस्मिन् पित्ते पाचकोऽग्निरिति संज्ञा; यत्तु यकृत्प्लीह्नोः पित्तं तस्मिन् रञ्जकोऽग्निरिति संज्ञा, सोऽभिप्रार्थितमनोरथसाधनकृदुक्तः; यदृष्ट्यां पित्तं तस्मिन्नालोचकोऽग्निरिति संज्ञा, सोऽभ्यङ्गपरिषेकावगाहालेपनादीनां क्रियाद्रव्याणां पक्ता छायानां च प्रकाशकः।
Reference:1.1.21.10.0(पूर्व>सूत्र>व्रणप्रश्नम्>सूत्र#10.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:व्रणप्रश्नम्
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