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Tantra
 


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Index Search for        'दक्षिणहस्ताङ्गुष्ठेन'
Sutra: अथानुवासितमास्थापयेत् स्वभक्त्यस्विन्नशरीरमुत्सृष्टबहिर्वेगमवाते शुचौ वेश्मनि मध्याह्ने प्रततायां शय्यायामधःसुपरिग्रहायां श्रोणिप्रदेशप्रतिव्यूढायामनुपधानायां वामपार्श्वशायिनमाकुञ्चितदक्षिणसक्थिमितर प्रसारितसक्थिं सुमनसं जीर्णान्नं वाग्यतं सुनिषण्णदेहं विदित्वा ततो वामपादस्योपरि नेत्रं कृत्वेतरपादाङ्गुष्ठाङ्गुलिभ्यां कर्णिकामुपरि निष्पीड्य सव्यपाणिकनिष्ठिकानामिकाभ्यां बस्तेर्मुखार्धं सङ्कोच्य मध्यमाप्रदेशिन्यङ्गुष्ठैरर्धं तु विवृतास्यं कृत्वा वस्तावौषधं प्रक्षिप्यदक्षिणहस्ताङ्गुष्ठेन प्रदेशिनीम
Reference:1.1.38.3.0(पूर्व>सूत्र>द्रव्यसंग्रहणीयम्>सूत्र#3.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:द्रव्यसंग्रहणीयम्
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