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Sutra: | कुपितास्तु दोषा वातपित्तश्लेष्माणोऽध: प्रपन्ना वङ्क्षणोरुजानुजङ्घास्ववतिष्ठमाना: कालान्तरेण पदमाश्रित्य शनै: शोफं जनयन्ति, तत् श्लीपदमित्याचक्षते । तत्त्रिविधं वातपित्तकफनिमित्तमेति॥ |
Reference: | 1.1.12.10.0(पूर्व>सूत्र>अग्निकर्मविधिम्>सूत्र#10.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | अग्निकर्मविधिम् |
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