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Index Search for        'त्रिरभ्यासाच्छरुतमादत्ते'
Sutra: हृतदोष एवागारं प्रविश्य हैमवत्या वचायाः पिण्डमामलकमात्रमभिहुतं पयसाऽलोड्य पिबेत्। जीर्णे पयः सर्पिरोदन इत्याहारः एवं द्वादशरात्रमुपयुञ्जीत। ततोऽस्य श्रोत्रं विव्रियते द्विरभ्यासात् स्मृतिमान् भवतित्रिरभ्यासाच्छरुतमादत्ते चतुर्द्वादशरात्रमुपयुज्य सर्वं तरति किल्बिषं तार्क्ष्यदर्शनमुत्पद्यते शतायुश्च भवति। द्वे द्वे पले इति रस्या वचाया निष्क्वाथ्य पिबेत् पयसा समानं भोजनं समाः पूर्वेणाशिषश्च॥
Reference:1.1.28.7.0(पूर्व>सूत्र>विपरीताविपरितव्रणविज्ञानीयम्>सूत्र#7.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:विपरीताविपरितव्रणविज्ञानीयम्
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