Index Search for 'जात्युत्पलप्रियककेशरपुण्डरीकपुन्नागकरवीरकृतोपचारे॥' |
Sutra: | गन्धोदकैः सकुसुमैरुपसिक्तभूमौ पत्राम्बुचन्दनरसैरुपलिप्तकुड्ये।जात्युत्पलप्रियककेशरपुण्डरीकपुन्नागकरवीरकृतोपचारे॥ |
Reference: | 1.2.47.61.0(पूर्व>निदान>वातव्याधिनिदानम्>सूत्र#61.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | वातव्याधिनिदानम् |
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