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Sutra: | न वेत्ति यो गन्धरसांश्चजन्तुर्जुष्टं व्यवस्येत्तमपीनसेन। तं चानिलश्लेष्मभवं विकारं ब्रूयात् प्रतिश्यायसमानलिङ्गम्॥ |
Reference: | 1.1.22.7.0(पूर्व>सूत्र>व्रणास्रावविज्ञानीयम्>सूत्र#7.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | व्रणास्रावविज्ञानीयम् |
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