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Sutra: | जीवन्ति तत्र यदि वैद्यगुणेन केचित्ते प्राप्नुवन्ति विकलत्वमसंशयं हि। संभिन्नजर्जरितकोष्ठशिरःकपाला जीवन्ति शस्त्रनिहतैश्च शरीरदेशैः।छिन्नैश्च सक्थिभुजपादकरैरशेषैर्येषां न मर्मपतिता विविधाः प्रहाराः॥ |
Reference: | 1.1.6.35.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#35.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | ऋतुचर्यम् |
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