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Sutra: | तत्र सप्त महाकुष्ठानि, एकादशक्षुद्रकुष्ठानि, एवमष्टादश कुष्ठानि भवन्ति। तत्र महाकुष्ठान्यरुणोदुम्बरर्ष्य(र्क्ष) जिह्वकपालकाकणपुण्डरीकदद्रुकुष्ठानीति। क्षुद्रकुष्ठान्यपि स्थूलारुष्कं महाकुष्ठमेककुष्कं चर्मदलं विसर्पः परिसर्पः सिध्मं विचर्चिका किटिभं(मं) पामा रकसा चेति॥ |
Reference: | 1.1.5.5.0(पूर्व>सूत्र>अग्रोपहरणीयम्>सूत्र#5.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | अग्रोपहरणीयम् |
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