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Sutra: | कृच्छ्राच्छ्वसन्तं मृदुसर्वगात्रं संवत्सरातीततमरोचकार्तम्।क्षीणं च वैद्यौ गलगण्डिनं तु चैवं भिन्नस्वरं चैवं विवर्जयेत् तु॥ |
Reference: | 1.1.11.28.0(पूर्व>सूत्र>क्षारपाकविधिम्>सूत्र#28.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | क्षारपाकविधिम् |
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