Index Search for 'क्षारसाध्यव्याधिव्याधितमुपवेश्य' |
Sutra: | तत्रक्षारसाध्यव्याधिव्याधितमुपवेश्य निवातातपेदेशऽसबाधेऽग्रोपहरणीयोक्तेन विधानेनोपसंभॄतसंभारं ततोऽस्य तमवकाशः निरीक्ष्यावघृ्ष्यावलिख्य प्रच्छयित्वा शलाकया क्षारं प्रतिसारयेत् दत्त्वा वाक्शतमात्रमुपेक्षेत॥ |
Reference: | 1.1.11.18.0(पूर्व>सूत्र>क्षारपाकविधिम्>सूत्र#18.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | क्षारपाकविधिम् |
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