Index Search for 'क्षतव्रणमुपेत्य' |
Sutra: | सद्य:क्षतव्रणमुपेत्य नरस्य पित्तं रक्तं च दोषबहुलस्य करोति शोफम्। श्यावं सलोहितमतिज्वरदाहपाकं स्फोटै: कुलत्थसदृशैरसितैश्च कीर्णम्॥ |
Reference: | 1.1.10.7.0(पूर्व>सूत्र>विशिखानुप्रवेशनीयम्>सूत्र#7.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | विशिखानुप्रवेशनीयम् |
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