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Index Search for        'एवोपद्रवा'
Sutra: सर्वर्तुषु दिवास्वापः प्रतिषिद्धोऽन्यत्र ग्रीष्मात्, प्रतिषिद्धेष्वपि तु बालवृद्धस्त्रीकर्शितक्षतक्षीणमद्यनित्ययानवाहनाध्वकर्मपरिश्रान्तानामभुक्तवतां मेदःस्वेदकफरसरक्तक्षीणानामजीर्णिनां च मुहूर्तं दिवास्वपनमप्रतिषिद्धम्। रात्रावपि जागरितवतां जागरितकालादर्धमिष्यते दिवास्वपनम्। विकृतिर्हि दिवास्वप्नो नाम; तत्र स्वपतामधर्मः सर्वदोषप्रकोपश्च। तत्प्रकोपाच्च कासश्वासप्रतिश्यायशिरोगौरवाङ्गमर्दाऽरोचकज्वराग्निदौर्बल्यानि भवन्ति; रात्रावपि जागरितवतां वातपित्तनिमित्तास्तएवोपद्रवा भवन्ति॥
Reference:1.1.4.38.0(पूर्व>सूत्र>प्रभाषणीयम्>सूत्र#38.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:प्रभाषणीयम्
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