Index Search for 'एवाप्यचलो' |
Sutra: | ग्रन्थि: सिराज: स तु कृच्छ्रसाध्यो भवेद् यदि स्यात्सरुजश्चलश्च। अरुक् सएवाप्यचलो मर्मोत्थितश्चापि विवर्जनीय:॥ |
Reference: | 1.1.11.9.0(पूर्व>सूत्र>क्षारपाकविधिम्>सूत्र#9.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | क्षारपाकविधिम् |
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