Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'एवं'
Sutra: मिथ्याहाराचारस्य विशेषाद् गुरुविरुद्धासात्म्याजीर्णाहिताशिनः स्नेहपीतस्य वान्तस्य वा व्यायामग्राम्यधर्मसेविनो ग्राम्यानूपौदकमांसानि वा पयसाऽभीक्ष्णमश्नतो यो वा मज्जत्यप्सूष्माभितप्तः सहसा छर्दिं वा प्रतिहन्ति, तस्य पित्तश्लेष्माणौ प्रकुपितौ परिगृह्यानिलः प्रवृद्धस्तिर्यग्गाः सिराः सम्प्रपद्य समुद्धूय बाह्यं मार्गं प्रति समन्ताद्विक्षिपति, यत्र यत्र च दोषो विक्षिप्तो निश्चरति तत्र तत्र मण्डलानि प्रादुर्भवन्ति,एवं समुत्पन्नस्त्वचि दोषस्तत्र तत्र च परिवृद्धिं प्राप्याऽप्रतिक्रियमाणोऽभ्यन्तरं प्रति
Reference:1.1.5.3.0(पूर्व>सूत्र>अग्रोपहरणीयम्>सूत्र#3.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:अग्रोपहरणीयम्
Search other sources: search this word on other online resources