Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'एवं'
Sutra: हृतदोष एवागारं प्रविश्य प्रतिसंसृष्टभक्तो ब्राह्मीस्वरसमादाय सहस्रसंपाताभिहुतं कृत्वा यथा बलमुपयुञ्जीत जीर्णौषधश्चापराह्णे यवागूमलवणां पिबेत् क्षीरसात्म्यो वा पयसा भुञ्जीतएवं सप्तरात्रमुपयुज्य ब्रह्मवर्चसी मेधावी भवति द्वितीयं सप्तरात्रमुपयुज्य द्विरुच्चारितं शतमप्यवधारयति। एवमेकविंशतिरात्रमुपयुज्यालक्ष्मीरपक्रामति मूर्तिमती चैनं वाग्देव्यनुप्रविशति सर्वाश्चैनं श्रुतय उपतिष्ठन्ति श्रतुधरः पञ्चवर्षशतायुर्भवति॥
Reference:1.1.28.5.0(पूर्व>सूत्र>विपरीताविपरितव्रणविज्ञानीयम्>सूत्र#5.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:विपरीताविपरितव्रणविज्ञानीयम्
Search other sources: search this word on other online resources