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Tantra
 


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Index Search for        'एव'
Sutra: नव स्नायुशतानि। तासां शाखासु षट्शतानि, द्वे शते त्रिंशच्च कोष्ठे, ग्रीवां प्रत्यूर्ध्वं सप्ततिः। एकैकस्यां तु पादाङ्गुल्यां षट् निचिताः, तास्त्रिंशत्, तावत्यएव तलकूर्चगुल्फेषु, तावत्यएव जङ्घायां, दश जानुनि, चत्वारिंशदूरौ, दश वङ्क्षणे, शतमध्यर्धमेवमेकस्मिन् सक्थ्नि भवन्ति, एतेनेतरसक्थि बाहू च व्याख्यातौ; षष्टिः कट्यां, पृष्टेऽशीतिः, पार्श्वयोः षष्टिः, उरसि त्रिंशत्; षट्त्रिंशद्ग्रीवायां, मूर्ध्नि चतुस्त्रिंशत्; एवं नव स्नायुशतानि व्याख्यातानि भवन्ति॥
Reference:1.1.5.29.0(पूर्व>सूत्र>अग्रोपहरणीयम्>सूत्र#29.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:अग्रोपहरणीयम्
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