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'एव'
Sutra:
वातपित्तश्लेष्माण
एव
देहसंभवहेतवः। तैरेवाव्यापन्नैरधोमध्योर्ध्वसन्निविष्टैः शरीरमिदं धार्यतेऽगारमिव स्थूणाभिस्तिसृभिरतश्च त्रिस्थूणमाहुरेके। त
एव
च व्यापन्नाः प्रलयहेतवः। तदेभिरेव शोणितचतुर्थैः संभवस्थितिप्रलयेष्वप्यविरहितं शरीरं भवति।
Reference:
1.1.21.3.0(पूर्व>सूत्र>व्रणप्रश्नम्>सूत्र#3.0)
Tantra:
पूर्व
Sthana:
सूत्र
Adhyaya:
व्रणप्रश्नम्
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