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Index Search for        'एव'
Sutra: तत्र पूर्वरूपेष्वपतर्पणं वनस्पतिकषायं बस्तमूत्रं चोपदिशेत्। एवमकुर्वतस्तस्य मधुराहारस्य मूत्रं स्वेदः श्लेष्मा च मधुरीभवति प्रमेहश्चाभिव्यक्तो भवति; तत्रोभयतः संशोधनमासेवेत। एवमकुर्वतस्तस्य दोषाः प्रवृद्धा मांसशोणिते प्रदूष्य शोफं जनयन्त्युपद्रवान् वा कांश्चित्, तत्रोक्तः प्रतीकारः सिरामोक्षश्च। एवमकुर्वतस्तस्य शोफो वृद्धोऽतिमात्रं रुजो विदाहमापद्यते, तत्र शस्त्रप्रणिधानमुक्तं व्रणक्रियोपसेवा च। एवमकुर्वतस्तस्य पूयोऽभ्यन्तरमवदार्योत्सङ्गं महान्तमवकाशं कृत्वा प्रवृद्धो भवत्यसाध्यः। तस्मादादितएव
Reference:1.1.12.4.0(पूर्व>सूत्र>अग्निकर्मविधिम्>सूत्र#4.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:अग्निकर्मविधिम्
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