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Sutra: | मण्डूकिमर्कममृतां च सलाङ्गलाख्यां मूत्रे पचेत्तु महिषस्य विधानविद्वा।एतान्न सन्ति चतुरो लिहतस्तु लेहान् गुल्मारुचिश्वसनकण्ठहृदामयाश्च॥ |
Reference: | 1.2.57.11.0(पूर्व>निदान>ग्रन्थपच्यर्बुदगलगण्डनिदानम्>सूत्र#11.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | निदान |
Adhyaya: | ग्रन्थपच्यर्बुदगलगण्डनिदानम् |
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