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Sutra: | भवन्ति चात्र-ऊर्व्यः शिरांसि विटपे च सकक्षपार्श्वे एकैकमङ्गुलमितं स्तनपूर्वमूलम्। विद्ध्यङ्गुलद्वयमितं मणिबन्धगुल्फं त्रीण्येव जानु सपरं सह कूर्पराभ्याम्॥ |
Reference: | 1.1.6.29.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#29.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | ऋतुचर्यम् |
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